तेजी से बढ़ रहे हैं “ग्रे डिवोर्स” के मामले, रिश्ता निभाने की जगह रिश्ता जीने की जरूरत
आगरा, 16 अप्रैल। हाल के वर्षाें में तेजी से ग्रे डिवोर्स शब्द प्रचलित हुआ है। बदलता लाइफ स्टाइल, एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, विचार न मिलना, सोशल प्रेशर, आर्थिक समस्याएं, सेहता जैसे कारणाें के चलते बढ़ रहे ग्रे डिवोर्स के मामले मानसिक स्वास्थ पर गहरा प्रभाव डाल रहे हैं। इस विषय की गंभीरता को लेकर विमल विहार, सिकंदरा में चल रहे मेंटल हेल्थ कार्निवल के चौथे दिन कार्यशाला आयोजित की गयी।
कार्यशाला में मुख्य रूप से डॉ रिचा श्रीवास्तव (एसएन मेडिकल कॉलेज के फिजियोलॉजी विभाग की विभागाध्यक्ष), डॉ रेनू अग्रवाल (कम्युनिटी मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष) डॉ सुमन गुप्ता (स्त्री रोग विशेषज्ञ), एडवोकेट नम्रता मिश्रा और फिलिंग्स माइंड्स संस्था की संस्थापिका डॉ चीनू अग्रवाल ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमारी सामाजिक संरचना में विवाह के समय सिखाया जाता है कि रिश्ता निभाना है। बस ये ही सोच रिश्ते में आतीं विसंगतियों को ढोती जाती हैं। बाहरी तौर पर सुखद परिवार दिखता है लेकिन अंदर की घुटन लंबी खामोशी बन जाती है और ये खामोशी रिश्ते को तोड़ती जाती है। नतीजा शादी के वर्षाें बाद ग्रे डिवोर्स के रूप में सामने आता है। आवश्यक है रिश्ते की सेहत की जांच करते रहें।
डॉ रिचा श्रीवास्तव ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की चाह और डिजिटल माध्यमों का अत्यधिक प्रयोग रिश्तों में दूरी पैदा कर रहा है। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
डॉ रेनू अग्रवाल ने कहा कि ग्रे डिवोर्स का अर्थ है जिन दंपतियों ने वर्षाें साथ बिताएं हैं, वे अपनी शादी को तोड़ने का फैसला ले रहे हैं। जब बच्चे बड़े होकर घर से चले जाते हैं तो माता पिता के पास एक दूसरे के अलावा उनके संवाद को जोड़ने वाला नहीं रह जाता। इससे उनके रिश्ते में खटास आने लगती है। आपसी संवाद कभी खत्म नहीं होने देना चाहिए। डॉ सुमन गुप्ता ने कहा कि दांपत्य जीवन में स्वयं की सेहत पर ध्यान देना अत्याधिक आवश्यक है। एक दूसरे का ख्याल रखें और समय दें, ताकि रिश्ते में प्रेम और सहयोग बना रहे।
नम्रता मिश्रा ने ग्रे डिवोर्स से कैसे निपटा जाए, इस पर व्याख्यान देते हुए कहा कि काउंसलिंग, खुले मन से बातचीत, नए शाैक, सृजनात्मकता, सामाजिक सहयोग और स्वयं पर ध्यान देने जैसे बदलाव रिश्तों को बचाए रखने में कामगर हो सकते हैं लेकिन यदि रिश्ते में गुंजाइश न हो तो घुटन में रहने या बच्चाें को अशांत पारिवारिक माहौल देने की जगह अलग हो जाएं।
संस्था के सह संस्थापक डॉ रविंद्र अग्रवाल ने बताया कि गुरुवार को कार्निवल के पांचवे दिन पेरेंटिग कोच स्वाति जैन कार्य− जीवन के लिए जागरुकता विशेष पर व्याख्यान देंगी।
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