हम सौगंध लें! उतना ही अन्न लें थाली में, व्यर्थ न जाए नाली में । सार्थकता है जीवन की इसमें, कोई भूखा नहीं सोए जीवन में ।।
"विश्व खाद्य दिवस पर" सामाजिक संस्था लोकस्वर के अध्यक्ष राजीव गुप्ता का चिंतन
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एक स्वस्थ जीवन के लिए और हर जीव के लिए अन्न उतना ही जरूरी है जितना हवा, पानी और सूरज। साथ के साथ अन्न जिव्हा और पेट को भी एक आनंद देने वाला पदार्थ होता है। जिस तरीके से आज समाज में पढ़े-लिखे और स्मार्ट लोग भी अन्न की बर्बादी करते हैं तो बड़ी ही चिंता ही नहीं, मंथन का विषय हो जाता है।
भारत में अन्न झूठा छोड़ना महा पाप होता था। कई दफ़ा हम भी पिटे हैं झूठा छोड़ने पर माँ के हाथ। उस देश में यह प्रवृत्ति बढ़ रही है सिर्फ भौतिकवाद के बढ़ते।
आज विश्व खाद्य दिवस पर अपने मन की बात आप लोगों के सामने रखना चाहता हूं।
१-सभी उत्सव को कराने और होटल वालों को कम से कम 5-10 आदमी ऐसे लगाने चाहिए जो आदमी प्लेट में खाना छोड़ें तो उसकी प्लेट को अलग रखके उस अन्न को किसी भी जीव को दिया जा सके।
२-जो व्यक्ति अन्न झूठा छोड़ते हैं उनकी कैमरामैन द्वारा तस्वीर खींची जाए और मेहमान नवाजी वाले को वह तस्वीर उसके व्हाट्सएप पर भेजनी चाहिए ताकि शायद वह आगे उसकी पुनरावृत्ति न करें ।
३-जो काउंटर लगे होते हैं खाना स्वयं न लेने की जगह अगर काउंटर पर खड़ा हुआ व्यक्ति अन्न देगा तो हो सकता है वह क्वांटिटी देखकर दे। ताकि खाने की बर्बादी को बचा सके।
४-अगर हम ऐसी कोई व्यवस्था कर सके कि जो झूठा छोड़ता है उसे रोकने की एक परंपरा बन सके तो बहुत अच्छा हो जाएगा आगे से शर्म में जूठा नहीं छोड़ेगा।
५-विदेश की तरह से भारतवर्ष में भी आयोजनों का पहले से ही कन्फर्मेशन होनी चाहिए इतने आदमी आएंगे ताकि मेहमान नवाजी करने वाला और इवेंट मैनेज के काम करने वाले लोग इस तरीके की व्यवस्था करें या तो उन्हें बैठकर खिलाया जाए या एक काउंटर पर अनाप-शनाप भीड़ नहीं हो ।
६-जिन उत्सव में बैठकर पंगत खिलाई जाती है उसमें अपना प्यार जरूर दिखाएं पर ऐसा प्यार नहीं दिखाएं कि जबरदस्ती एक खस्ता कचौड़ी यार मेरे हाथ से। इसकी की जगह अपने दिल से खिलाओ और यह सोच के खिलाओ कि सामने वाले को फूड प्वाइजनिंग भी न हो और खाने की बर्बादी भी न हो ।
७-अक्सर देखा गया है कि उत्सव या किसी भी प्रोग्राम में तो अन्न की बर्बादी होती ही है, हम लोग घरों में भी काफी तादाद में अन्न की बर्बादी करते हैं। सभी गृहणियों को विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है अगर किसी कारणवश भी अन्न को झूठा छोड़ना पड़ता है तो उसे नाली में डालने की जगह उसे अन्न इस तरीके से निस्तारण करें वह किसी अन्न अन्य जीव के काम आ जाए।
इसी तरीके की हम अन्य तमाम बातें हो सकती है या आपके दिमाग़ में आती है जिसको मूर्त रूप अगर नहीं दिया गया तो विश्व में जिस तरीके से पानी के लिए दूसरा विश्व युद्ध होगा उसी तरीके से भुखमरी से जो आज अनेक प्राणी मर जाते हैं कुपोषण के शिकार हो जाते हैं उनकी गिनती दिन प्रतिदिन बढ़ती जाएगी क्योंकि कृषि क्षेत्र में काम करने वाले किसानों की संख्या कम हो रही है और खेती की जमीन को वह लोग बेचकर अन्य व्यवसाय में जा रहे हैं। अन्नदाता को उसके मेहनत का न तो फल मिल पा रहा है न मूल्य मिल पा रहा है इसलिए वह क्षेत्र से पलायन कर रहा है। ऐसे में हम लोगों को अन्य उत्पादन की तरफ भी ध्यान देना होगा।
-- लेखक - राजीव गुप्ता
लोक स्वर आगरा
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