न्याय की देवी- नया स्वरूप
लेखक - जे एस फौजदार
भारतीय न्यायालयों में न्याय की देवी की प्रतिमा की आँखों पर पट्टी बंधी रहती थी, उनके एक हाथ में तराजू व दूसरे हाथ में तलवार रहती थी जिसको बदल कर अब उस हाथ में संविधान दिखाई देगा व आँखों से पट्टी हटा दी गयी है। इस बदलाव के लिए विवेचना की गयी है कि "कानून" कभी अँधा नहीं होता सबको सामान दृष्टि से देखता है। हाथ में संविधान का मकसद समाज में ये सन्देश देना है कि न्याय संविधान के अनुसार किया जाता है। दूसरे हाथ में तराजू इसका प्रतीक है कि कानून की नजर में सभी समान हैं।" इस बदलाव का कारण बताया गया है कि न्याय की देवी का पुराना प्रतीक अंग्रेजों द्वारा स्थापित किया गया था जो उस जमाने के कानून बदलने पर प्रतीक में भी परिवर्तन होना चाहिए।
अब प्रश्न ये है कि क्या ये विवेचना सर्वग्राही, सर्वसम्मत व सनातन है या बदलाव का सिर्फ कारण ये है कि न्याय की देवी का प्रतीक किसी दूसरे के द्वारा निर्णीत किया गया था। इसके सही निर्णय पर पहुँचने के लिए हमें अपना दृष्टिकोण निष्पक्ष रखते हुए कुछ Basic & Absolute मान्यताओं पर विचार करना पड़ेगा।
प्रकृति ने जीव की संरचना करते समय शरीर में विभिन्न उद्देश्यों व क्रियाओं के लिए विभिन्न आंतरिक व बाहरी अंग जैसे ज्ञानेंद्रीय, कर्मेंद्रीय व मस्तिष्क आदि अलग-अलग क्रियाओं के लिए भिन्न-भिन्न अंगों की रचना की। ईश्वर की इस रचना का हमारे विद्वान पूर्वजों ने भली-भांति अध्ययन किया व सामाजिक व प्राकृतिक सिद्धांतों के अनुसार इन अंगों के सही उपयोग व क्रियात्मकता को प्राप्त करने के लिए हमें मार्गदर्शित किया। हमारे विद्वानों ने हमें कार्य करने के तरीके व उद्देश्य ही नहीं बताये बल्कि जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए कुछ नियम व उपनियम भी बना दिए, जिन्हें परंपरा की संज्ञा दी गयी। लोग इन परम्पराओं का अनुसरण करें इसके लिए इनको या तो धर्म से या भावनाओं से जोड़ दिया गया।
परम्पराओं के अनुसार ही न्यायालयों में न्यायाधीशों के विशेषणों के प्रतीक के रूप में न्याय की देवी की परिकल्पना की गयी। हमारे विद्वानों ने न्याय की विशेषताओं के बारे में भी स्पष्ट किया-
"न्याय उचित, निष्पक्ष हो और उसका समय पर परिपालन हो।"
उचित समतुल्य न्याय से तात्पर्य है कि जिस प्रकार का कर्म (अपराध) किया है उसके अनुरूप ही अपराध बोध कराके, दंड की प्रक्रिया के द्वारा न्याय को संतुलित किया जाये और उसके प्रतीक के रूप में न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू दिखा कर न्यायाधीशों का मार्गदर्शन किया जाये।
निष्पक्ष न्याय का जो उद्देश्य है कि हम सभी नियमों का सुचारु रूप से पालन करें इसके लिए न्याय का निष्पक्ष जो सभी के लिए सामान जिसमें हमारी भावनाएं अपने पराये, छोटे-बड़े, अच्छे - बुरे या अन्य मानवीय कमजोरियों से परे हो, होना आवश्यक है। चूंकि इन भावनाओं का ज्ञान हमारी ज्ञानेंद्रियों के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है अतः अपनी इन्द्रियों के नियंत्रण का प्रतीक या हमारे कान व आंख का प्रयोग अपराध के तथ्य उपलब्ध कराने में न किया जाये अर्थात विषय सम्बंधित हमारी भावनाएं अपराधी या अपराध को प्रभावित न करें, अतः दिखाया गया कि न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बंधी है।
किसी ज्ञानेन्द्रिय द्वारा ज्ञान या भावनाओं की उत्पत्ति के लिए चार अवस्थाएं है:-
1. Accepting
2. Receiving
3. Analysing and
4. Giving Command to work through our mind.
अब भावना किसी को प्रभावित न करे इसके लिए इन इन्द्रियों का प्रयोग सीमित कर दिया।
सहजता (न्याप का परिपालन)- इस कथन को समझने से पहले न्याय क्या है ये जान लें तो विषय सरल हो जायेगा।
न्याय: किसी आचरण या व्यवहार (मन, वचन, कर्म) का विभिन्न विधानों के अनुसार विश्लेषण व विवेचना करके, समाज, संस्कृति धर्म व जीवन के अन्य घटकों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर उपयुक्त निर्णय से अवगत कराना व निर्णय का परिपालन सुनिश्चित करने की आज्ञा देना, न्याय कहलाता है।"
हम देखते हैं कि न्याय में दो क्रियाओं का सम्मिश्रण है
1. निर्णय करना
2. निर्णय के परिपालन की आज्ञा देना
अब आज्ञा देना तो न्यायाधीश के लिए एक आम सरल प्रक्रिया है परन्तु उस आज्ञा का परिपालन तभी होगा जब न्यायाधीश के पास कुछ Authority होगी और उसी Authority को दिखाया गया था उस न्याय के देवी के हाथ में तलवार देकर, तलवार यहां हिंसा का प्रतीक न होकर अधिकार का प्रतीक है। इसके उपरांत न्याय की अन्य विशेषता यह भी होनी चाहिए परन्तु यहां संदर्भित विशेषताओं की ही बात की गयी है।
अब इस प्रतीक में एक बदलाव तलवार की जगह संविधान हाथ में यह कहकर दिया गया है कि न्याय संविधान के अनुसार ही सबको दिया जायेगा। जबकि वास्तविकता ये है कि न्याय तो कानून के आधार पर दिया जाता है। हाँ, कानून का आधार संविधान हो सकता है।
अतः संविधान व कानून को भली-भांति समझाना पड़ेगा। संविधान "जीवन" के लिए आवश्यक प्रावधानों का निर्णय करता है। कानून जीवन पद्धति को सुचारु रूप से बताने का निर्णय करता है। जीवन पद्धति संविधान के अनुसार ही रहे, इसके लिए कानून की व्यवस्था की गयी है। कानून व्यवस्थित व उपयोगी बने इसके लिए संविधान का निर्माण किया गया।
जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए संविधान बनाया।
जीवन मूल्यों का परिपालन हो इसके लिए कानून बनाया।
कानून का आधार, संविधान हो सकता है। जबकि संविधान का आधार जीवन मूल्य होता है और इन जीवन मूल्यों के परिपालन का साधन ही कानून है।
अब जहां तक न्यायाधीशों के गुणों का प्रश्न है तो एक न्यायाधीश के अन्दर
1. ज्ञान
2. भावनाओं पर Control के साथ
3. Authority या अधिकार होना भी आवश्यक है
न्याय की प्रक्रिया
1. Collection of Facts (truth)
2. Analysis to confirm the truth (facts) on different grounds
3. Discussion, Sharing the effect of that truth (happening)
4. Providing solutions to rectify the bad effect of truth (happening)
5. Implementation of that solution, providing judgement with authority.
न्याय पाने के लिए, न्यायालय में घटना के Facts (truth) के साथ साथ Grounds व परिस्थिति जनित (Natural Justice) के अनुसार साक्ष्य प्रस्तुत किये जाते हैं।
विद्वान न्यायाधीश उन घटनाओं व साक्ष्य आदि की वैधानिक, प्राकृतिक व सामाजिक विधानों के अनुसार, विवेचना करते हुए ध्यान रखते हैं कि इस सत्य के Confirmation के लिए कोई मानवीय कमजोरियों को आधार न बनाया जाये जो हमारे मानवीय मूल्यों को क्षति पहुंचाए।
इस प्रकार की विवेचना के बाद, न्यायाधीश अपराध को संतुलित करते हुए, घटना के पड़ने वाले प्रभाव को Compensate करने के लिए एक उचित निर्णय द्वारा दंड या क्षतिपूर्ति के Implementation की आज्ञा देते हैं।
भारत की पुरानी संस्कृति के अनुसार, अपराध के बदले अपराधी में सुधार हो व समाज में इस प्रकार की विकृति न पनपे, इस प्रकार के प्रावधानों की मान्यता थी।
न्याय की इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए उचित व संतुलित का प्रतीक तराजू, निष्पक्षता व भावना शून्य के लिए इन्द्रियों का प्रयोग वर्जित का प्रतीक आँख पर पट्टी व समयबद्ध अनुपालन का प्रतीक Authority या तलवार है। जो न्याय की देवी के पुराने स्वरूप में ही विद्यमान था।
अगर न्याय के एक आधार कानून के बारे में हम विधिवत कथन करें तो कानून की विशेषता, निम्नानुसार हो तो कानून बनाने का उद्देश्य सफल होगा।
1. समानता
2. प्राकृतिक नियमों के अनुकूल व्यावहारिक
3. सरलव मानवीय मूल्यों की रक्षा करने वाला
प्रत्येक कानून Human behaviour and Human Psychology के अनुरूप उचित मानवीय मूल्यों के परिपालन के लिए होना चाहिए और "उचित मापतोल एक तराजू से अधिक और कौन संतुलन की व्यवस्था करेगा।
कानून का दूसरा गुण समानता है अर्थात अपना पराया, छोटा बड़ा व अन्य कमजोरियों से परे कानून सभी के लिए एक समान व पूर्ण पारदर्शी होना चाहिए जो खुली आँखों से ही संभव है।
कानून बनाते समय, किस के लिए व क्यों बनाया जा रहा व अन्य परिस्थितियों का ज्ञान जिनको होगा वही लोग सही निर्णय ले सकते हैं। इसके साथ कानून किन-किन आधारों पर बनाया जा सकता है, इसका साधन तो सिर्फ संविधान से ही प्राप्त हो सकता है।
अतः खुली आँखों के साथ, एक हाथ में तराजू व दूसरे हाथ में संविधान की परिकल्पना "न्याय की देवी का न होकर, कानून की देवी का होना चाहिए। कानून चूंकि संसद में, सांसदों के द्वारा बनाया जाता है। अतः इस प्रतीक का सही स्थान न्यायालय न होकर संसद भवन होना चाहिए। न्याय के 'सही व गलत" के लिए आँखों का खुला होना आवश्यक नहीं है परन्तु कानून के सही व गलत के तिए आँखों का खुला होना, अतिरिक्त योग्यता है।
(लेखक सामाजिक चिंतक, विचारक और आगरा के प्रमुख बिल्डर हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
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