चैंबर में नहीं थमा संविधान समिति पर विवाद, प्रदीप वार्ष्णेय ने उठाए योगेंद्र सिंघल को चेयरमैन बनाने पर सवाल

आगरा, 12 मई। नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स में पिछले दिनों संविधान संशोधन समिति का चेयरमैन बनाने को लेकर शुरू हुआ विवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है। पूर्व अध्यक्ष प्रदीप वार्ष्णेय ने चैंबर कार्यकारिणी के उस प्रस्ताव पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं, जिसमें पूर्व अध्यक्ष योगेंद्र सिंघल को संविधान संशोधन समिति का चेयरमैन बनाने की बात कही गई।
वार्ष्णेय ने चैंबर अध्यक्ष अतुल गुप्ता को भेजे पत्र में कहा है कि चूंकि पिछली संविधान समिति के चेयरमैन भी योगेंद्र सिंघल थे, इसलिए उनके द्वारा तय किए गए नियमों में संशोधन के लिए पुनः उन्हें ही चेयरमैन नहीं बनाया जा सकता। यह एक प्राकृतिक नियम है कि अपने द्वारा पारित किसी भी विषय पर संशोधन के समय में कोई व्यक्ति कितना भी निष्पक्ष और ईमानदार हो लेकिन कुछ संशोधनों में उससे पक्षपात होने की पूरी संभावनाएं बनी रहेगी।
पत्र में अंग्रेजी भाषा में नियम का हवाला देते हुए कहा गया है कि Nemo judex in causa sua (or Nemo judex in sua causa) is a Latin phrase that means, literally, "no-one is a judge in his own cause, it is a principal of natural justice that no person can judge a case in which they have an interest. Justice must not only be done but must be seen to be done." यह नियम किसी भी एक व्यक्ति पर लागू न होकर पूरी मानव जाति के लिए लागू होता है।
वार्ष्णेय ने पत्र में एक और मजबूत कारण रखते हुए कहा कि इस साल प्रस्तावित संविधान संशोधन के लिए योगेंद्र सिंघल द्वारा चैंबर को पत्र दिया गया है, जिसमें ग्रुपों की संख्या में संशोधन की सिफारिश की गई है, जबकि पूर्व में उनके द्वारा किए गए संशोधन में ग्रुपों की संख्या में बदलाव न करने की बात कही गई थी। वार्ष्णेय का कहना है कि पत्र देने से योगेंद्र सिंघल स्वयं एक पक्षकार हो गए और कोई भी पक्षकार अपने विषय से संबंधित किसी कमेटी का सदस्य और चेयरमैन नहीं हो सकता। चैंबर के हमारे संविधान के "नियम 22 के सब नियम ल" में स्पष्ट वर्णित है।
संविधान का नियम 22 ल निम्न प्रकार से है-
(ल) चैम्बर का कोई भी सदस्य (पदाधिकारी, प्रबंध समिति सदस्य, विशेष आमंत्रित सदस्य, साधारण सदस्य) ऐसी किसी समिति/उपसमिति का सदस्य अथवा चेयरमैन नहीं हो सकता जिसमें उसके स्वयं की कार्यशैली के बारे में चर्चा की जानी हो। ऐसी समिति अपने विवेक से उस सदस्य को जिसकी कार्यशैली के बारे में उस समिति में चर्चा होनी हैं उसका पक्ष जानने के लिए बुला सकती है।
उच्च अधिकारियों के संज्ञान में डालने की भी चेतावनी
पूर्व अध्यक्ष प्रदीप वार्ष्णेय ने पत्र में कहा है कि इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए चेयरमैन के चयन में पुनः विचार करना अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा उच्च अधिकारियों के संज्ञान में इन अनियमिताओं को लाना होगा।
कार्यसमिति में रखेंगे पत्र
इस बारे में पूछे जाने पर चैंबर अध्यक्ष अतुल गुप्ता ने कहा कि उन्होंने अभी यह पत्र पढ़ा नहीं है। संविधान संशोधन समिति का चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव कार्यसमिति की बैठक में आया था। अब पूर्व अध्यक्ष प्रदीप वार्ष्णेय के पत्र को भी कार्यसमिति के समक्ष रखा जायेगा। कार्यसमिति यदि चाहेगी तो पूर्व के निर्णय पर पुनर्विचार कर सकती है।
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