जॉब सीकर नहीं, जॉब क्रिएटर और जॉब प्रोवाइडर बनें आज के युवा
आगरा फुटवियर मैन्युफेकचरर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर (एफमेक) के अध्यक्ष पूरन डावर की गिनती आगरा के प्रमुख फुटवियर निर्यातकों में होती है। अपनी युवावस्था में जीवन के संघर्षों को नजदीकी से देख चुके पूरन डावर कई बार अपने विचारों से समाज को रास्ता दिखाने का कार्य भी बखूबी करते हैं। वर्तमान में उन्हें विभिन्न मंचों पर युवाओं को देश के आर्थिक विकास से जुड़ने के लिए प्रेरित करते देखा जा सकता है। ऐसा ही उनका एक प्रेरणादायी आलेख यहां प्रस्तुत है:-
देश स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई लड़ रहा है वर्ष 1947 में मिली राजनीतिक और भौगोलिक आज़ादी थी उस समय के नारे अंग्रेजो भारत छोड़ो, इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारे थे। वर्ष 1857 में ये नारे लगना शुरू हुए सफलता 1947 में मिली। आज देश आर्थिक स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है और नारे बदले हैं 2014 से। मेक इन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया स्टार्ट अप इंडिया, स्पीडअप इंडिया, स्किल इंडिया, रिस्किल इंडिया, अप स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया के नारे हैं।
जिन युवाओं में मलाल रह गया हो कि उनको देश की आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने का मौक़ा नहीं मिला, तो ध्यान रखें, ईश्वर ने उन्हें देश की आज़ादी की लड़ाई में जान देने के लिये नहीं देश के लिये शान से जीने के लिये बनाया है। आर्थिक आज़ादी का सेनानी बनाया है।
पूरा विश्व भारत को एक ग्लोबल फैक्ट्री के रूप में देख रहा है। हमें जॉब सीकर नहीं, जॉब क्रिएटर और जॉब प्रोवाइडर बनना है। हमारी शिक्षा नौकरी के लिये नहीं ज्ञान के लिये है, बल्कि हमारे परिवार का जो कार्य है, जो हुनर हमें विरासत में मिला है, उसे व्यवस्थित करने के लिये है। उस छोटे कहे जाने वाले कार्यों को सम्मान दिलाने के लिये है।
गर्व करो आप किसान के बेटे हैं।
गर्व करो आप नाई के बेटे हैं।
गर्व करो आप कपड़े धोने वाले के बेटे हैं।
गर्व करो आप दर्जी के बेटे हैं।
गर्व करो आप जूता कारीगर के बेटे हैं।
गर्व करो आप कुम्हार के बेटे हैं।
गर्व करो आप तेली के बेटे हैं।
गर्व करो आप ड्राइवर के बेटे हैं।
गर्व करो आप सफ़ाई कर्मचारी के बेटे हैं।
आपके पास विरासत में हुनर है। आप उनसे बेहतर हैं, जो मात्र कर्मचारी के बेटे हैं, ऑफिस बाबू के बेटे हैं, जिनके पास ऐसा कोई हुनर नहीं है। आप अपनी शिक्षा से इन छोटे कहे जाने वाले कामों को सम्मान दिला सकते हैं।
आज छोटे इसलिये कहे जाते हैं कि वो पढ़े-लिखे नहीं हैं। उनके पास आज की आवश्यकता के अनुसार संवरने की न सोच है, न संसाधन। अपने हुनर से आप उनको व्यवस्थित कर सकते हैं। स्केल अप कर सकते हैं। उन्हें उद्योग में बदल सकते हैं। आज पढ़-लिख कर अपने परिवार को इस अभिशाप से मुक्ति दिला सकते हैं।
मैं आपके समक्ष हूँ, जूता बनाने का कार्य करता हूँ अनपढ़ होकर करता मोची कहलाता और कोई थोड़ा सम्मान से बात करता तो आर्टिज़न कह देता लेकिन पढ़-लिख कर रहा हूँ तो आज इंडस्ट्रियलिस्ट कहलाता हूँ। आज जूता इंडस्ट्री छह बिलियन डॉलर के निर्यात के साथ 28 बिलियन डॉलर का उद्योग है।
यदि आपका परिवार खेती कर रहा है। आप पढ़ -लिख कर आधुनिक तकनीक एवं संसाधनों से सूरत बदल सकते हैं। केवल वर्षा पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। फसल को बीमा के साथ सुरक्षित कर सकते हैं। अपने उत्पादों को एग्रो इंडस्ट्री में बदल सकते हैं। मार्केट में आज के भाव पर बेचने में मज़बूर होने से बचा सकते हैं।
आपकी शिक्षा नाईं को सैलून, ब्यूटी पॉर्लर मेक ओवर आर्टिस्ट में, कपड़े धोने, प्रेस करने को मैकेनाइज्ड लाउंड्री, ड्राई क्लीनिंग में, दर्जी को मेक टू मेजर और फ़ैशन डिज़ाइनर में या गारमेंट इंडस्ट्री में बदल सकती है। आपको गारमेंट निर्यातक बना सकती है। ड्राइवर को शोफर में, ट्रैवल एजेंसी में बदल सकती है। तेली तो आज आयल मिल के मालिक कहलाते हैं। कुम्हार अपने उद्योग को पॉटरी उद्योग में बदल सकते हैं जिसका बहुत बड़ा बाज़ार है। कुल मिलाकर शिक्षा आपके पारिवारिक कामों को अभिशापों से मुक्त कराने के लिए है नौकरी के लिये नहीं।
देश में सरकारी-अर्ध सरकारी और निजी क्षेत्र में मिलकर मात्र 7.3% वाइट कॉलर जॉब हैं। जो पढ़ - लिखकर कर मात्र नौकरी पर दांव लगाते हैं उन्हें सोचना पड़ेगा 7.3% की लाइन में लगना चाहते हैं या 92.7% की। अन्यथा 92% को निराशा लगने वाली है और यह भी सोचना होगा कि आप पढ़-लिख कर पद पर पहुँच गये, अमेरिका में नौकरी पर लग गये लेकिन आपका परिवार आपके माता-पिता वही कर रहे हैं। उसी तरह जूता गाँठ रहे हैं या वही सड़क पर नाई हैं। उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो क्या आप माता-पिता का ऋण चुका पाये हैं।
- पूरन डावर
सामाजिक चिंतक एवं विश्लेषक
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