नेशनल चैंबर की कार्यप्रणाली पर उठ रहे गंभीर सवाल, पालन ही नहीं तो संविधान और चुनाव समिति का क्या औचित्य??
आगरा, 03 मार्च। उद्यमियों के सबसे बड़े संगठन नेशनल चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स में इन दिनों सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सरकारी संगठनों से पारदर्शिता और ईमानदारी की अपेक्षा रखने वाले इस संगठन की अपनी पारदर्शिता और ईमानदारी पर सवाल उठाए जा रहे हैं।एक और चैंबर की कोर कमेटी के अध्यक्ष ने चैंबर नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर दिया है तो दूसरी ओर चुनाव समिति को निष्पक्षता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है।
कोर कमेटी के अध्यक्ष ने भारी मन से अपनी व्यथा व्यक्त कर दी। चैंबर को भेजे पत्र में उन्होंने कहा कि एक तरफ सौ दिन में सौ बैठकें करने के दावे किए गए, दूसरी ओर उन्हें कोर कमेटी की बैठक करने से महज इसलिए रोका जा रहा है कि उन्होंने चैंबर में संविधान के उल्लंघन के बिंदु को एजेंडे में शामिल कर लिया। तीन बार उन्होंने बैठक करने की अग्रिम सूचना भेजी, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर टाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने चैंबर को एक कड़ा पत्र और जारी किया।
इस बीच चैंबर में विगत 29 फरवरी को भी उनको लेकर कुछेक सदस्यों में बहस हुई। कुछेक पूर्व अध्यक्षों ने व्हाट्स ऐप ग्रुप में भी संविधान और कोर कमेटी के अध्यक्ष की पीड़ा को लेकर सवाल उठाए और पूरे घटनाक्रम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। संवैधानिक समिति के अध्यक्ष को उसके अधिकारों और कर्तव्यों का प्रयोग करने से रोके जाने पर आपत्ति भी की गई। इसके बाद आगामी 15 मार्च को कोर कमेटी के अध्यक्ष को बैठक कर लेने को अनुमति मिल गई। बैठक का एजेंडा जो अभी तक सर्कुलेट नहीं किया जा रहा था, उसे भी सर्कुलेट करा दिया गया।
क्या निष्पक्षता निभा रहे चुनाव समिति के सदस्य?
उधर चुनाव समिति के सदस्यों की कार्यशैली पर भी सवाल उठ गए हैं। चैंबर के संविधान के अनुसार, चुनाव समिति अध्यक्ष या सदस्य किसी भी प्रत्याशी का नामांकन भरवाने, नाम वापसी कराने या फिर चुनाव प्रचार में शामिल नहीं हो सकते हैं। लेकिन आरोप हैं कि कुछ सदस्य शुरू से इन गतिविधियों में सक्रिय हैं। पहले पसंदीदा प्रत्याशी का नामांकन भरवाने में जमकर सक्रियता निभाई गई। वर्तमान अध्यक्ष राजेश गोयल द्वारा नामांकन वापस ले लिए जाने के बाद अध्यक्ष पद पर अतुल गुप्ता अकेले प्रत्याशी रह गए तो दूसरा प्रत्याशी खड़ा करने की हरचंद कोशिशें की गईं। संभावितों को चुनाव जीतने के समीकरण समझाए गए। दिन-रात संपर्क किया गया, लेकिन कुछ लोग व्यक्तिगत कारणों से तो कुछ लोग चुनावी गणित का आकलन करके नामांकन से दूर रहे।
कोषाध्यक्ष पद पर भी संविधान नहीं सर्वसम्मति का पालन??
नामांकन पत्रों की जांच से पहले कोषाध्यक्ष पद के एक प्रत्याशी के राजनीतिक दल का पदाधिकारी होने पर सवाल उठे। बात बढ़ी तो दूसरे पक्ष ने प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी की कैटेगरी को लेकर सवाल उठाने की धमकी दे दी। गौरतलब है कि चैंबर के संविधान के अनुसार कोषाध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद के लिए नामांकन करने वाला प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी नहीं होना चाहिए। साथ ही प्रोफेशनल कैटेगरी का सदस्य नहीं होना चाहिए।
एक पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि इन स्थितियों में होना तो यह चाहिए था कि दोनों ही नामांकन खारिज किए जाते और पद को रिक्त घोषित करते हुए बाद में कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित कर किसी अन्य सदस्य को इस पद पर मनोनीत किया जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, दोनों ही नामांकन वैध मान लिए गए। इस संबंध में चुनाव समिति के अध्यक्ष का कहना है कि समिति ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया।
संविधान के जानकार एक पूर्व अध्यक्ष ने सवाल किया कि यहां भी संविधान सम्मत निर्णय क्यों नहीं लिया गया।
नाम वापस कराने के लिए भी जोड़तोड़ शुरू
नाम वापसी की तिथि नजदीक आने के साथ ही जोड़तोड़ भी शुरू हो गई है। शनिवार को कुछ पूर्व अध्यक्षों और प्रत्याशियों की बैठक कमलानगर स्थित एक होटल में हुई। इस बैठक में भी चुनाव समिति के कुछ सदस्य मौजूद थे। हालांकि चुनाव समिति के अध्यक्ष को भी इस बैठक में बुलाया गया था, लेकिन उन्होंने नियमों का हवाला देकर आने से इंकार कर दिया। इस बैठक में तीन प्रमुख पदों के सात में से छह प्रत्याशी मौजूद रहे। यद्यपि एक प्रत्याशी ने शुरू में आने में काफी ना-नुकुर की पर बाद में वह पहुंच गए। बैठक में सहमति के प्रयासों को गति देते हुए सभी से नामांकन पत्र वापसी के लिए हस्ताक्षर कराए गए। उद्देश्य यह था कि सभी के नाम वापसी के पत्र मिलने बाद ही सर्वसम्मति बनाई जाए, लेकिन बाद में पहुंचे प्रत्याशी ने सोचने के लिए रविवार तक का समय मांग लिया। इस पर सभी के नाम वापसी पत्र उन्हें लौटा दिए गए।
इस बीच कुछ बातें ऐसी भी होती दिखीं कि शायद सहमति न बन पाए, इसलिए प्रत्याशियों ने अपना प्रचार जारी रखने का निर्णय ले लिया। अब देखना होगा कि सर्वसम्मति के लिए पुनः कोई बैठक होती है या फिर सभी चुनाव मैदान में बने रहते हैं।
_______________________________________
Post a Comment
0 Comments