Inspirational Story: क्या अपने सुना है कि एमबीबीएस-एमडी डॉक्टर ने होम्योपैथी पद्धति अपना ली हो? मुंबई के सफल डा.जसवंत पाटिल की कहानी यही है!
आगरा, 11 दिसंबर। आपने होम्योपैथी या एलोपैथी के चिकित्सक तो बहुत देखे-सुने होंगे, लेकिन क्या कभी सुना है कि किसी डॉक्टर ने मरीजों के इलाज के लिए एमबीबीएस की डिग्री होने के बावजूद होम्योपैथी की डिग्री हासिल की हो और उसी पद्धति को अपना लिया हो। ताजनगरी में हुई होम्योपैथी के चिकित्सकों की कार्यशाला में शामिल हुए मुंबई के डा. जसवंत पाटिल की कहानी यही है।
डा. पाटिल ने अपनी मां की जिंदगी बचाने के लिए होम्योपैथी की पढ़ाई की। क्योंकि, उनकी मां को एलोपैथी दवाइयों से फायदा नहीं हो रहा था। होम्योपैथी की दवाओं के असर से उनकी मां के 48 घंटे में लाइफ सपोर्ट उपकरण हट गए। 72 घंटे में वह ठीक हो गईं। इसके बाद वर्ष 2015 में एमबीबीएस डॉक्टर ने बाकायदा होम्योपैथी की डिग्री हासिल की और पूरी तरह से होम्योपैथी की प्रैक्टिस शुरू कर दी।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी फिजीशियंस की वर्कशॉप में आए डा. पाटिल महाराष्ट्र के जलगांव जिले के रहने वाले हैं। डा. पाटिल ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1982 में एमबीबीएस की डिग्री ली थी। वर्ष 1987 में एमडी की डिग्री भी ली। मुंबई के जसलोक और रामकिशन हॉस्पिटल में प्रैक्टिस शुरू की। प्रैक्टिस अच्छी चल रही थी। वर्ष 1984 में भोपाल गैस कांड हुआ था। वर्ष 1987 में इसकी रिसर्च टीम में उन्हें शामिल किया गया। क्योंकि उनकी हृदय के साथ फेफड़ों के रोगों पर भी विशेषज्ञता थी।
कुछ समय बाद उनकी मां का फोन आया। उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी। उन्होंने इच्छा जताई कि वह जलगांव में आकर प्रैक्टिस करें। मां के कहने पर वे 1995 में जलगांव चले आये। नर्सिंग होम बनाया और वहां प्रैक्टिस शुरू कर दी।
उन्होंने बताया कि कोशिशों के बाद भी मां की तबियत लगातार और खराब होती गई। सेप्टिक शॉक के साथ कई अंगों की विफलता से पीड़ित हो गईं। विशेषज्ञ होने के बाद एलोपैथी दवाओं के इलाज से उनको आराम नहीं दिलवा पा रहा था। मां आईसीयू में भर्ती हो गईं थीं। इसके बाद अपने सर्किल के विदेशों में प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टर्स से भी मशविरा किया। उस समय लगा कि मां कुछ घंटे की मेहमान हैं।
डॉ. पाटिल ने बताया कि तभी उन्हें एक डॉक्टर ने सुझाव दिया कि होम्योपैथी में उनकी मां की बीमारी का इलाज है। इसके बाद होम्योपैथी में इलाज का ही रास्ता नजर आया। उन्होंने होम्योपैथी के डॉक्टरों से संपर्क किया, लेकिन कई डॉक्टर ने मां की हालत देखकर प्रिस्कप्शन नहीं लिखा। बाद में उन्होंने अपने सर्किल के एक डॉक्टर से प्रिस्कप्शन लिया। पहली डोज से ही मां की तबियत में सुधार दिखा। होम्योपैथी के इलाज से 48 घंटे बाद उनके लाइफ सपोर्ट हट गए। 72 घंटे में ठीक हो गईं और 10 वर्ष तक ठीक-ठाक हालत में रहीं।
डॉ. पाटिल ने बताया, "यह चमत्कार देख मैंने एक होम्योपैथी विशेषज्ञ को अपने नर्सिंग होम में रखकर एलोपैथी के साथ होम्योपैथी की दवा देना भी शुरू कर दिया। मैंने भी होम्योपैथी के बारे में पढ़ना शुरू कर दिया। करीब पांच साल तक होम्योपैथी के बारे में पढ़ाई की। वर्ष 2015 में मैंने बीएएमएस की डिग्री ली। इसके बाद से पूरी तरह से होम्योपैथी की प्रैक्टिस शुरू कर दी।"
उन्होंने बताया कि ओपीडी में आने वाले मरीज तो चार गुना तक बढ़ गए, लेकिन हॉस्पिटल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या घट गई। जिन बीमारी में लोगों सालों से दवाई खा रहे थे, वे होम्योपैथी इलाज से ठीक होने लगीं। उनकी दवाएं भी बंद हो गई। दावा है कि कैंसर सहित ऐसे कई मरीजों को ठीक किया जा चुका है, जिनके हृदय और लिवर का ट्रांसप्लांट होना था। वे दवाओं से ही ठीक हो गए।
डॉ. पाटिल ने कहा कि होम्योपैथी ऐलोपैथी से बहुत कारगर है। बस इसमें अभी रिसर्च की जरूरत है। जिस तरह से एमबीबीएस की ट्रेनिंग होती है, उस तरह से अगर होम्योपैथी की ट्रेनिंग शुरू हो जाए तो देश से बहुत सी बीमारी जड़ से ही खत्म हो जाएंगी। उन्होंने दो दिन पहले उत्तराखंड में हुई समिट में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के सामने इन केसों को साक्ष्य के साथ प्रस्तुत किया था।
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