वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर प्रोजेक्ट के लिए आगरा का व्यापारी 510 करोड़ देने को तैयार
- हाईकोर्ट ने पूछा- योजना लागू हुई तो मंदिर प्रबंधन किसके हाथ?
प्रयागराज, 06 अक्टूबर। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण मामले में शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अहम सुनवाई हुई। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान आगरा के व्यापारी प्रखर गर्ग ने अर्जी देकर कहा कि वह प्रोजेक्ट के लिए 510 करोड़ रुपये देने के लिए तैयार हैं, जिसमें से 100 करोड़ रुपये एक महीने में जमा कर देंगे। इस पर कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आप मंदिर का पैसा चाहते ही क्यों हैं? कोर्ट ने कहा क्या सरकार के पास पैसे की कमी है? अगर, सरकार के पास पैसे की कमी नहीं है तो सारे विवाद का हल हो गया, तब तो कोई विवाद ही नहीं बचा।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र व अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा, लोक शांति और व्यवस्था के लिए सरकार ने प्रस्तावित योजना तैयार की है, जिसमें नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई जायेंगी। मंदिर की व्यवस्था के लिए मंदिर का पैसा लगाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अनंत शर्मा और अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका की चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।
गौरतलब है कि सेवायतों की ओर से कहा गया कि सरकार मंदिर की सुविधा बढ़ाना चाहती है, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन, निजी मंदिर का ट्रस्ट है, चढ़ावे पर सरकार को दावा नहीं करना चाहिए। अधिवक्ता संजय गोस्वामी ने याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल तथ्यात्मक मुद्दे को लेकर कोई भी याचिका पोषणीय नहीं है। कानूनी अधिकार को लेकर ही याचिका पोषणीय है। याचिका खारिज की जाये।
याची अधिवक्ता श्रेया गुप्ता ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है, किंतु यह निर्बाध नहीं है, युक्तियुक्त हस्तक्षेप किया जा सकता है। वर्तमान समय मे मंदिर प्रबंधन के लिए कोई समिति नहीं है। सिविल जज की निगरानी में व्यवस्था की जा रही है। प्रबंधन विवाद मथुरा की सिविल अदालत में विचाराधीन है। सरकार दर्शनार्थियों की सुरक्षा के कदम उठा सकती है।
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कोर्ट ने जानना चाहा कि यदि योजना लागू की जाती है तो मंदिर का प्रबंधन किसके हाथ होगा? सेवायतों के, ट्रस्ट के या सरकार के हाथ। हालांकि, सरकार की ओर से इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया। अधिवक्ता राघवेंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार प्रस्तावित योजना लागू करे। सारा खर्च प्रखर गर्ग की तरफ से दिया जाएगा। सरकार मंदिर का चढ़ावा न ले, सारा खर्च हम देंगे। कोर्ट ने कहा, मंदिर का पैसा सरकार न ले तो सारा विवाद ही ख़त्म। अब इस मामले में अगली सुनवाई 11अक्टूबर को होगी।
सिविल कोर्ट में चल रहा प्रबंधन विवाद
मालूम हो कि मंदिर का संचालन एक निजी ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा था, लेकिन, प्रबंधन विवाद को लेकर वर्तमान समय में सिविल अदालत में मुकदमा चल रहा है। इस संबंध में डिक्री भी है और सिविल जज की ओर से निगरानी की जा रही है। सेवायत का कहना है कि सरकार कॉरिडोर बनाये, सुरक्षा व्यवस्था करें। मंदिर नहीं, अपने पैसे से निर्माण करे, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। मंदिर निजी ट्रस्ट है। जिसमें, चढ़ावा पर कुछ हिस्सा ट्रस्ट को और कुछ सेवायतों को जा रहा है। इससे कुछ परिवार पल रहे हैं। सरकार की नजर मंदिर के पैसे पर है। वह कुछ पैसा खर्च नहीं करना चाहती है। मंदिर के पैसे से ही सारा काम करना चाह रही है, जिससे सैकड़ों परिवारों की जीविका खत्म हो जायेगी। मंदिर पर गोस्वामियों को पूजा का अधिकार है जो सैकड़ों वर्षों से यह चला आ रहा है।
(साभार:- न्यूज18)
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