दवाओं पर अधिक एमआरपी के खिलाफ अभियान चलाएगा नेशनल चैंबर

- डॉक्टरों के जेनरिक दवाएं न लिखने पर भी जताई आपत्ति
आगरा, 24 अगस्त। नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स ने दवाइयों पर लिखी जा रही बेहद अधिक एमआरपी के खिलाफ अभियान चलाने का निर्णय लिया है। इस अभियान से अन्य संगठनों और संस्थाओं को भी जोड़ा जायेगा। चैम्बर द्वारा गुरुवार को जारी बयान में कहा गया कि डॉक्टरों द्वारा रेगुलेशन का पालन ठीक प्रकार से नहीं किया जाता है और उनके द्वारा जेनरिक दवाइयां नहीं लिखी जाती हैं, जबकि जेनेरिक दवाइयां लिखा जाना डॉक्टरों के लिए अनिवार्य है, ताकि गरीब व्यक्ति दवाई ले सके और इलाज करवा सके।
बयान में कहा गया कि दवाइयों पर एमआरपी वास्तविक मूल्य से तीन से चार गुना तक अधिक लिखी जाती है। इससे उपभोक्ताओं का बुरी तरह शोषण होता है और गरीब व्यक्ति अपना इलाज करवाने में असहाय हो जाता है। यह सामाजिक अन्याय है। 
बयान में चैंबर अध्यक्ष राजेश गोयल और पूर्व अध्यक्ष एवं जनसम्पर्क प्रकोष्ठ के चेयरमैन तथा इस अभियान के संयोजक मनीष अग्रवाल ने कहा कि दवाइयों की एमआरपी पर नियंत्रण होना चाहिए। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर 2013 के शेड्यूल में कुल दवाइयों में से केवल 20 प्रतिशत दवाइयों का ही उल्लेख है और उन्हीं के एमआरपी पर नियंत्रण है। शेष 80 प्रतिशत दवाइयों के सम्बन्ध में उक्त ऑर्डर में कोई नियंत्रण की व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण दवाई बनाने वाली कंपनियां वास्तविक कीमत से 4-5 गुनी कीमत एमआरपी के रूप में दर्शा देती हैं। दवाई विक्रेता ऊँचे दाम पर दवा बेचता है और गरीब मरीजों का शोषण करता है। यह आवश्यक है कि समस्त दवाइयों की एमआरपी के निर्धारण की व्यवस्था हो। 
बयान में मांग की गई कि जनोपयोगी रेगुलेशन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाये। इस सम्बन्ध में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री को पत्र भेजा गया है। यह जनहित का मामला है, अतः अन्य संगठनों को भी इस अभियान में जोड़ा जायेगा।
अधिवक्ता के. सी. जैन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका- सिविल सं0 794 वर्ष 2023 भी लंबित है जिसमें केन्द्र सरकार सहित सभी को नोटिस विगत 18 अगस्त को जारी किये जाने के आदेश हो चुके हैं।
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