शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का देहावसान

नई दिल्ली, 11 सितम्बर। द्वारका की शारदा पीठ और ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आज दोपहर मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में देहावसान हो गया है।
इसी महीने 2 सितंबर को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने अपना 99वां जन्म दिवस मनाया था। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के देहावसान के बाद सनातन धर्म में शोक की लहर फैल गई है।
स्वामी स्वरूपानंद का जन्म दो सितंबर, 1924 में सिवनी जिले के दिघोरी ग्राम में हुआ था। उन्होंने मात्र आठ वर्ष की आयु से झोतेश्वर में तपस्या कर तपस्वी जीवन व्यतीत किया। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और जेल भी गए। सनातन धर्म की रक्षा की। इसलिए उन्हें सनातन धर्म का रक्षक मानते हैं। स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। वे वर्ष 1982 में गुजरात में द्वारका शारदा पीठ और बद्रीनाथ में ज्योतिर मठ के शंकराचार्य बने।
स्वामी शंकराचार्य सरस्वती के माता-पिता ने बचपन में उनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। उन्होंने नौ साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और धर्म की तरफ रुख किया।
हिंदुओं को संगठित करने की भावना से आदिगुरु भगवान शंकराचार्य ने 1300 वर्ष पूर्व भारत की चारों दिशाओं में चार धार्मिक राजधानियां (गोवर्धन मठ, श्रृंगेरी मठ, द्वारका मठ एवं ज्योतिर्मठ) बनाईं। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती दो मठों (द्वारका एवं ज्योतिर्मठ) के शंकराचार्य थे। शंकराचार्य का पद हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदुओं का मार्गदर्शन एवं भगवत् प्राप्ति के साधन आदि विषयों में हिंदुओं को आदेश देने के विशेष अधिकार शंकराचार्यों को प्राप्त होते हैं।
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