हिटलरशाही देशों को बर्बादी के रास्ते पर ले जाती है
नजरिया-- अशोक शर्मा
मेरा ऐसा मानना है कि कोई जरूरी नहीं कि एक मजबूत सरकार सही दिशा में ही आगे बढ़े। हिटलर की सरकार भी अपने समय की एक मजबूत सरकार थी, लेकिन वह कुशलतापूर्वक और दृढ़ता के साथ जर्मनी को बर्बादी के रास्ते पर ले गयी, जिसका दुष्परिणाम कई वर्षों तक जर्मनी के लोगों को सहना पड़ा।
आज आम लोग अपने-अपने देश की हुकूमतों से नाराज हैं। इसकी वजह शायद यह है कि वर्ष 1990 के दशक के बाद तमाम भौतिक प्रगति के बावजूद विकासशील और अविकसित देशों की जनता के बीच गैरबराबरी काफी ज्यादा बढ़ी है। ऐसे में यह राजनीतिक लोकतंत्र ही है, जिसके माध्यम से लोग असंतोष जाहिर कर रहे हैं।
अगर हम यह कहें कि भूमंडलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) ने लोगों पर काफी असर डाला है। कुछ लोगों के लिए जरूर अवसर के दरवाजे खुले हैं और उनकी पूंजी में वृद्धि हुई है। परन्तु 90 प्रतिशत लोगों के लिए यह बेरोजगारी और गरीबी लेकर आया है। इसमें विजेता कम और गंवाने वाले, हारने वाले अधिक हैं। अचानक कोरोना के प्रकटीकरण से तथाकथित उभरती अर्थव्यवस्था में मध्य वर्ग और सुपर रिच और अल्ट्रा रिच यानि अत्यधिक धनाढ्य लोग बड़े विजेता बने हैं। औद्योगिक देशों में कामगार व निम्न मध्य वर्ग तथा विकासशील देशों में गरीब व हाशिए के लोग वंचितों में शामिल हो गए हैं।
दुनिया भर में ऐसा दिख रहा है कि असमानता की वजह से जो जगह खाली हुई हैं, उन्हें दक्षिणपंथी और धुर राष्ट्रवादी पार्टियां भर रही हैं। उन्होंने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की विफलताओं को भुनाया और लोगों की नाराज़गी को हवा दी थी।
आज उनकी राजनीति लामबंदी, अवसरवाद, लोकलुभावन वाद पर टिकी है। लोगों के सामने उच्च बेरोजगारी तथा कम आय जैसी मुश्किलें सामने आ रही हैं। दूसरी ओर दक्षिणपंथी पार्टियां विषवमन कर सांस्कृतिक पहचान का सवाल उठा रही हैं। साथ-साथ मुगलों के अत्याचार, इस्लाम विरोधी भावना को उभारने के लिए धार्मिक रूढ़िवाद की याद दिलाई जा रही है। जिसमें 1935 के जिन्ना नये अवतार में प्रवेश कर चुके हैं।
नागरिकों को बचाने हेतु युवा पीढ़ी को उपाय ढूंढने की जरूरत है। गांधी, भगतसिंह तथा जेपी आदि महापुरुषों के चिंतन से अलग-अलग उपाय खोज कर आगे आना होगा। मानवता के दुश्मन लोगों से भिड़ना तथा लड़ना होगा। मानवता की जीत सुनिश्चित करनी होगी। ऐसा मेरी समझ में आता है।
आप क्या सोचते हैं?
(लेखक जेपी आंदोलन के सक्रिय सदस्य रहे एवं युवा छात्र संघर्ष वाहिनी के राष्ट्रीय समन्वयक हैं। यहां प्रस्तुत विचार उनके निजी हैं।)
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