मोदी की टिप्पणी से "हिन्दी में न्याय" अभियान को मिली ताकत

आगरा के चन्द्रशेखर उपाध्याय ढाई दशक से चला रहे मुहिम
आगरा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले सप्ताह नई दिल्ली में देश के वरिष्ठतम जजों व मुख्यमंत्रियों को सम्बोधित करते हुए अदालती कामकाज मातृभाषा में निपटाने पर बल दिया था। इसके बाद ही देश भर में इस पर विचार-विमर्श प्रारम्भ हो गया। 
हिन्दी में कामकाज की लम्बे समय से वकालत कर रहे चन्द्रशेखर उपाध्याय ने इसे अपने अभियान के प्रति सरकार का बेहद सकारात्मक कदम कहा है। मूल रूप से आगरा निवासी और वर्तमान में उत्तराखंड में सक्रिय चन्द्रशेखर ढाई दशक से हिंदी में न्याय अभियान चला रहे हैं। 
गौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद 348 में देश की शीर्ष अदालतों में केवल अंग्रेजी में ही कामकाज निपटाने की बाध्यता है, यह व्यवस्था अंग्रेजों के समय से है। अनुच्छेद 370 की तरह यह भी एक अस्थायी संवैधानिक व्यवस्था है। अनुच्छेद 349 में इसे भारत का संविधान लागू होने के पन्द्रह वर्ष के भीतर इसे समाप्त करने की बात कही गयी थी। सोलहवीं लोकसभा में भाजपा के अर्जुनराम मेघवाल ने मामला सदन में उठाया था। वर्तमान 17वीं लोकसभा में भाजपा के ही सत्यदेव पचौरी ने अनुच्छेद 348 में संशोधन की मांग की थी।
चन्द्रशेखर उपाध्याय का कहना है कि लगभग ढाई-दशक बाद किसी प्रधानमंत्री ने देश के सबसे बड़े मंच से उनकी मुहिम का समर्थन किया है।
चन्द्रशेखर का अभियान देश की सरहदों को पार करता हुआ कई यूरोपीय देशों तक पहुँच गया है, वहाँ रह रहे भारतीयों ने अभियान के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान चलाया। दो वर्ष के भीतर उन्होंने देश-भर से लगातार एक करोड़, नौ लाख के आसपास हस्ताक्षर जुटाये हैं। 27 प्रान्तों में उनकी टीमें काम कर रही हैं।
चन्द्रशेखर आगरा में पत्रकारिता से करियर शुरू करने के बाद  उत्तराखण्ड के अतिरिक्त महाधिवक्ता, वहाँ दो मुख्यमंत्रियों के ओएसडी (न्यायिक, विधायी एवम् संसदीय कार्य) तथा विधि-आयोग में रह चुके हैं।


ख़बर शेयर करें :

Post a Comment

0 Comments