पोता-पोती पैदा करो या पांच करोड़ रुपये दो, मां-बाप का बेटे-बहू पर मुकदमा


देहरादून। हरिद्वार में बीएचईएल के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी संजीव रंजन और उनकी पत्नी साधना प्रसाद ने अपने गुवाहाटी स्थित पायलट बेटे और नोएडा स्थित कामकाजी बहू पर "मानसिक प्रताड़ना" के आधार पर मुकदमा दायर किया है, क्योंकि वे "शादी के छह साल बाद भी उन्हें पोता देने में विफल रहे।" 
बुजुर्ग दंपति ने "एक साल के भीतर" पोता-पोती या पांच करोड़ रुपये दिये जाने की मांग की, जिसे उन्होंने अपने बेटे के "पालन और शिक्षा" पर खर्च करने का दावा किया।
दंपति के वकील अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि इस राशि में पांच सितारा होटल में बेटे की शादी पर खर्च, 60 लाख रुपये की एक लग्जरी कार उपहार में दी गई और विदेश में हनीमून पर खर्च की गई राशि भी शामिल है। याचिका हरिद्वार की एक स्थानीय अदालत में दायर की गई है, जिस पर अदालत ने विगत 15 मई से सुनवाई शुरू कर दी। 
61 वर्षीय पिता ने याचिका में कहा, "मेरा केवल एक ही बेटा है। मैंने अपनी सारी बचत उसके पालन-पोषण और शिक्षा पर खर्च कर दी। उसे वर्ष 2006 में एक पायलट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए अमेरिका भेजा गया, जिसके लिए मैंने 50 लाख रुपये से अधिक खर्च किए। वह वर्ष 2007 में भारत की ओर मुड़ गया। विदेश में मंदी के कारण उसने अपनी नौकरी खो दी थी। मैंने इस अवधि के दौरान भी आर्थिक रूप से उसकी मदद की।"
उन्होंने आगे कहा, "हमने वर्ष 2016 में उनकी शादी इस उम्मीद के साथ की थी कि हम अपने रिटायरमेंट में खेलने के लिए हमें एक पोता या पोती मिलेगी। हालांकि, लगभग छह साल बीत चुके हैं और कोई बच्चा नहीं है। हम मानसिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।"
पिता ने बताया, "मेरा बेटा और बहू दो अलग-अलग शहरों में हैं, जो उनकी नौकरी का कारण है। हम अपनी बहू को अपनी बेटी की तरह मानते हैं। इसके बावजूद, वह शायद ही कभी हमारे साथ रहती है। हमने उसे यह भी बताया कि अगर उसे अपनी नौकरी के कारण बच्चे की देखभाल करने की चिंता है, तो वह हमें बच्चा दे सकती है, ताकि हम उसका पालन-पोषण, देखभाल कर सकें।" 
वकील अरविंद श्रीवास्तव ने कहा कि दंपति के बेटे और बहू को नोटिस दिया जाएगा, अदालत के समक्ष उनका जवाब मांगा जाएगा। श्रीवास्तव कहते हैं, "साधना प्रसाद और उनके पति संजीव रंजन ने जीवन भर की जमा-पूंजी बेटे को पालने, उसका भविष्य बनाने और शादी में ख़र्च कर दी, लेकिन अब बेटे ने उनसे बातचीत तक बंद कर दी है। वे दोनों मेरे पास आए और अपनी आपबीती सुनाई। हमें लगा कि घरेलू हिंसा अधिनियम-2005 की धारा 12 के तहत अदालत में आवेदन किया जा सकता है। ये मानसिक उत्पीड़न का मामला है।
इस सवाल पर कि बच्चा पैदा करना या न करना बेटे-बहू का फैसला है, श्रीवास्तव कहते हैं, 'तभी उन्होंने विकल्प के रूप में मुआवज़ा मांगा है। उन्हें पोता-पोती के सुख से वंचित किया जा रहा है, तो इसकी भरपाई की जाए।'
अदालत को दिए प्रार्थना पत्र में मां साधना प्रसाद ने बेटे-बहू और बहू के माता-पिता और उनके दो भाइयों पर भी मुक़दमा किया है। इसमें लिखा गया है कि बेटा अपने ससुराल वालों के कहने में चल रहा है और उन्होंने बेटे के वेतन पर भी क़ब्ज़ा किया हुआ है।
साधना कहती हैं, "यदि हमारे बच्चे हमसे बात किए बिना ख़ुश हैं, तो उन्हें ख़ुश रहने दो। हमने उनके जीवन में हस्तक्षेप नहीं किया। लेकिन जब हमने पोता या पोती के लिए आग्रह किया तो वे बहाने बनाने लगे। उनकी शादी को छह साल का समय बीत गया है।" वो कहती हैं, "समाज के लोग उन्हें ताना देते हैं और मानसिक उत्पीड़न कर रहे हैं। उनका वंश समाप्त होने की कगार पर है। भविष्य में उनका नाम लेने वाला कोई नहीं रहेगा, जिससे उन्हें बहुत मानसिक पीड़ा पहुंच रही है।"


ख़बर शेयर करें :

Post a Comment

0 Comments