सिकंदरा में नगर निगम ने थोप दिये मनमाने टैक्स
समूह-3 की जगह समूह-2 में रखने का हो रहा कड़ा विरोध
फैक्ट्री ओनर्स एसोसिएशन ने की शिकायत, नेशनल चैम्बर भी उठायेगा आवाज
आगरा, 14 अप्रैल। नगर निगम के महापौर या नगर आयुक्त अपने अधीनस्थों को कितने भी कड़े निर्देश जारी कर लें, लेकिन निगम के अधिकारी व कर्मचारी अपनी मर्जी से काम करते हैं और जनता को परेशान बनाये रखने का कोई न कोई तरीका अपनाये रहते हैं। वैसे तो शहर की जर्जर सड़कों और बेलगाम सफाई व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है, पर आज मुद्दा है निगम के टैक्स विभाग का। टैक्स विभाग में बैठे अधिकारी शहरवासियों पर मनमर्जी टैक्स थोप रहे हैं। परेशान जनता इन अधिकारियों के चक्कर काटकर दुःखी हो रही है।
ऐसी ही परेशानी से आजकल सिकंदरा औद्योगिक क्षेत्र के उद्यमी गुजर रहे हैं। वर्ष 2019 में नगर निगम सीमा में शामिल हुए इस क्षेत्र में वर्ष 2021-22 से गृहकर लागू करने की बात तय हुई थी। यह सहमति विगत जून माह में उद्यमियों की महापौर नवीन जैन के साथ हुई बैठक में हुई। महापौर व नगर आयुक्त के निर्देशों के बावजूद निगम के अधिकारियों ने तुरंत टैक्स गणना का कार्य शुरू नहीं किया। वित्तीय वर्ष 2021-22 की समाप्ति से कुछ ही दिन पहले निगम अधिकारियों की नींद टूटी और उन्होंने गूगल एप की मदद से मनमर्जी गणना करते हुए उद्यमियों को गृहकर के बिल भेजने शुरू कर दिये। इन बिलों में तमाम गलतियां होने के कारण उद्यमियों में गहरी नाराजगी फैल गई और उन्होंने इसका विरोध शुरू कर दिया।
उद्यमियों की नाराजगी की प्रमुख वजहों में एक बड़ी वजह सिकंदरा औद्योगिक क्षेत्र को समूह-2 में रखा जाना है। उनका दावा है कि यह क्षेत्र समूह-3 में आता है। अतः उसी समूह के अनुसार टैक्स की गणना होनी चाहिये। दूसरी बड़ी आपत्ति सम्पत्ति के आकार और कवर्ड क्षेत्र को लेकर है। उद्यमियों की शिकायत है कि निगम से अनुबंधित कम्पनी ने अपने कार्यालय में ही बैठकर गूगल एप की मदद से टैक्स की गणना कर दी, जबकि नियमानुसार मौके पर निरीक्षण किया जाना चाहिये। गूगल एप से गणना के कारण न तो भवनों की सही माप आ पाई है और न ही कवर्ड क्षेत्र की सही माप हो पाई है। निगम ने इसी गणना के आधार पर अनाप-शनाप टैक्स थोप दिया है।
निगम अधिकारियों ने वित्तीय वर्ष की समाप्ति से एन पहले आनन-फानन में बिल बनवा कर उद्यमियों को भेज दिए। इन बिलों को देख उद्यमी भौंचक हैं। उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। उनकी मांग है कि निगम अधिकारियों की छह माह की शिथिलता का भार उद्यमियों पर न डाला जाये।
निगम ने इन नोटिसों में कर की गणना को संशोधित कराने के लिये एक माह का समय दिया। औद्योगिक क्षेत्र साइट एबीसी में लगभग 350 इकाइयां हैं। सभी इकाइयों को बिलों को संशोधित कराने में काफी समय लग सकता है। इसलिए अवधि बढ़ाई जानी चाहिए और बिलों के साथ कोई ब्याज राशि नहीं थोपी जानी चाहिये।
उद्यमियों का आरोप है कि क्षेत्रफल, निर्माण का प्रकार एवं कर की गणना के लिए लागू खण्ड और सड़क की चौड़ाई इत्यादि लगभग सभी मापदंड मिथ्या दर्शाये गये हैं, जिसके कारण संपत्ति पर कर देयता लगभग डेढ़ गुनी से चार गुनी तक बना दी गयी है। इस कारण कई उद्यमी मानसिक अवसाद की स्थिति में आ गये हैं। निगम को औद्योगिक क्षेत्र में शिविर लगाकर सभी नोटिसों में संशोधन करना चाहिये।
सिकंदरा फैक्ट्री ओनर्स एसोसिएशन इस बारे में लिखित शिकायत भेज चुकी है। उद्यमियों की बड़ी संस्था नेशनल चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स ने इन विसंगतियों को दूर कराने की मांग को लेकर 25 अप्रैल को नगरायुक्त के साथ बैठक भी तय कर दी है।
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